उस रात के अंधेरे में जब


उस रात के अंधेरे में जब हर दिया खोता रहा
इक शम्म’अ सा जलता हुआ दिल मेरा इकलौता रहा


जब भी कभी बैठा खुदा लिखने मेरा अच्छा नसीब
लिखना बहुत कुछ था उसे, पन्ना मगर छोटा रहा


मंज़िल मुझे भी ना मिली, मंज़िल उसे भी ना मिली
मैं रात भर फिरता रहा, वो रात भर सोता रहा


सोना उगलती क्या ये मिट्टी, घास चरती थी अक़ल
दौलत उगाने के लिये सिक्के सदा बौता रहा


मेरी वफ़ा का फिर लगा इलज़ाम ऐसा मेरे सर
दामन पे जो ना था लगा वो दाग़ मैं धोता रहा


ना आ रहा था चाँद मेरा ईद पर मुझको नज़र
लोगो ने पूछा क्यूँ मैं सबकी ईदी को लौटा रहा ?


रहता उफ़क़ है दूर ही, जितना भी जाऊं पास मैं
कैसा ज़मीं और आसमां के बीच समझौता रहा


थी पत्तियों पर ओंस की बूँदें सुबह पर रात भर
ये कौन मानेगा कि वो जो फूल था रोता रहा


अब क्या कहें ? कहने को भी तो रह गया आखिर है क्या ?
सोचो जरा होना था क्या, क्या-क्या मगर होता रहा


~ चित्र

4 Responses to “उस रात के अंधेरे में जब”

  1. myblog1962 Says:

    bahut khoobsurat


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